विदर्भ में चलती है सूदखोरों की समानांतर सत्ता-जागरण
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49&edition=2010-12-20&pageno=7
ठ्ठओमप्रकाश तिवारी, मुंबई सन 2005 में कलावती के पति ने सूदखोरों से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी, अब दो दिन पहले कलावती के दामाद ने भी सूदखोरों से ही तंग आकर कीटनाशक पीकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। ये वही कलावती है, जिसके घर कुछ वर्ष पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने अचानक पहुंचकर उसके सारे दुख हरने का वायदा किया था। केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माने जानेवाले राहुल भी कलावती का कष्ट नहीं हर पाए क्योंकि विदर्भ में चप्पे-चप्पे पर सूदखोरों की समानांतर सत्ता चलती है। कभी राजनेताओं को आर्थिक मदद देकर उनसे संरक्षण पाने वाले सूदखोर अब जिला परिषद एवं नगर निगमों में स्वयं सत्तारूढ़ होने लगे हैं, तो कुछ सूदखोर बाकायदा विधानसभा में पहुंचकर राज्य के लिए बनने वाली नीतियों में भी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। दिलीप कुमार सानंदा ऐसे ही विधायकों में थे, जिनके पिता गोकुल सानंदा पर हो रही कानूनी कार्रवाई रुकवाने के एवज में मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख तक को महाराष्ट्र के हाईकोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय की फटकार सुननी पड़ी है एवं राज्य सरकार को 10 लाख रुपए जुर्माना देने का आदेश हुआ है। सरकार इस क्षेत्र में किसानों को सूदखोरों के चंगुल से बचाने में कैसे नाकाम रही है, इसे इस घटनाक्रम से समझा जा सकता है। जून, 2006 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयं विदर्भ का दौरा कर नाबार्ड की ओर से 2500 करोड़ रुपए स्थानीय बैंकों को दिलवाने की घोषणा की और अगले वर्ष इसे दोगुना करने का आश्वासन दे गए। ताकि यह पैसा किसानों को कर्ज के रूप में दिया जा सके और उन्हें सूदखोरों के पास न जाना पड़े। इस राहत के चलते 2007 में इस क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या में करीब काफी हद तक कमी देखी गई। लेकिन अगले वर्ष प्रधानमंत्री के वायदे के अनुसार बैंकों को रकम नहीं पहुंची। विदर्भ जनांदोलन समिति के संयोजक किशोर तिवारी के अनुसार यह रकम न आने के कारण बैंकों ने फिर से हाथ खींच लिए एवं किसानों को पुन: सूदखोरों के सामने हाथ पसारना पड़ा। फलस्वरूप 2008 में किसानों की आत्महत्याओं का आंकड़ा फिर से बढ़ गया। 28 फरवरी, 2008 को राष्ट्रीय बजट में दी गई कर्जमाफी योजना का लाभ निश्चित रूप से किसानों को मिला। जिसके चलते आत्महत्याओं का आंकड़ा अगले वर्ष काफी नीचे आया। लेकिन यह रुका नहीं क्योंकि कर्जमाफी योजना के तहत केंद्र से आए धन का इस्तेमाल ज्यादातर सहकारी बैंकों ने अपनी रकम वसूलने में कर लिया।
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ठ्ठओमप्रकाश तिवारी, मुंबई सन 2005 में कलावती के पति ने सूदखोरों से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी, अब दो दिन पहले कलावती के दामाद ने भी सूदखोरों से ही तंग आकर कीटनाशक पीकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। ये वही कलावती है, जिसके घर कुछ वर्ष पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने अचानक पहुंचकर उसके सारे दुख हरने का वायदा किया था। केंद्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माने जानेवाले राहुल भी कलावती का कष्ट नहीं हर पाए क्योंकि विदर्भ में चप्पे-चप्पे पर सूदखोरों की समानांतर सत्ता चलती है। कभी राजनेताओं को आर्थिक मदद देकर उनसे संरक्षण पाने वाले सूदखोर अब जिला परिषद एवं नगर निगमों में स्वयं सत्तारूढ़ होने लगे हैं, तो कुछ सूदखोर बाकायदा विधानसभा में पहुंचकर राज्य के लिए बनने वाली नीतियों में भी सक्रिय भागीदारी निभा रहे हैं। दिलीप कुमार सानंदा ऐसे ही विधायकों में थे, जिनके पिता गोकुल सानंदा पर हो रही कानूनी कार्रवाई रुकवाने के एवज में मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख तक को महाराष्ट्र के हाईकोर्ट और सर्वोच्च न्यायालय की फटकार सुननी पड़ी है एवं राज्य सरकार को 10 लाख रुपए जुर्माना देने का आदेश हुआ है। सरकार इस क्षेत्र में किसानों को सूदखोरों के चंगुल से बचाने में कैसे नाकाम रही है, इसे इस घटनाक्रम से समझा जा सकता है। जून, 2006 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वयं विदर्भ का दौरा कर नाबार्ड की ओर से 2500 करोड़ रुपए स्थानीय बैंकों को दिलवाने की घोषणा की और अगले वर्ष इसे दोगुना करने का आश्वासन दे गए। ताकि यह पैसा किसानों को कर्ज के रूप में दिया जा सके और उन्हें सूदखोरों के पास न जाना पड़े। इस राहत के चलते 2007 में इस क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या में करीब काफी हद तक कमी देखी गई। लेकिन अगले वर्ष प्रधानमंत्री के वायदे के अनुसार बैंकों को रकम नहीं पहुंची। विदर्भ जनांदोलन समिति के संयोजक किशोर तिवारी के अनुसार यह रकम न आने के कारण बैंकों ने फिर से हाथ खींच लिए एवं किसानों को पुन: सूदखोरों के सामने हाथ पसारना पड़ा। फलस्वरूप 2008 में किसानों की आत्महत्याओं का आंकड़ा फिर से बढ़ गया। 28 फरवरी, 2008 को राष्ट्रीय बजट में दी गई कर्जमाफी योजना का लाभ निश्चित रूप से किसानों को मिला। जिसके चलते आत्महत्याओं का आंकड़ा अगले वर्ष काफी नीचे आया। लेकिन यह रुका नहीं क्योंकि कर्जमाफी योजना के तहत केंद्र से आए धन का इस्तेमाल ज्यादातर सहकारी बैंकों ने अपनी रकम वसूलने में कर लिया।
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